रविवार, 4 अप्रैल 2021

माया के गंगा

                


             मया के गंगा
हमार माया के गंगा ला बहाई देनाओ
 मोर दिल के रानी प्यास बुझाई देना ओ
  तोता ला मैना कहय आबे ग  मोर गांव 
एके संगमा मीत करबो एके रुख के छाव 
 एके खोधरा म जिंदगी ला बिताई लेते न 
हमर माया के गंगाला बहाई देना ओ
मोर दिल के रानी प्यास ल बुझाई देना ओ 
अमर होगे लैला मजनू प्रेम के कहानी मा 
याद कर ले ताजमहल ओ प्रीत के निशानी ला 
संगी दुनिया मा ऐमन अमर होगे ना 
हमार माया के गंगा ला बहाई देनाओ
 मोर दिल के रानी प्यास बुझाई देना ओ
 



सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

✴हमर छत्तीसगढ़ के सिधवा मनखे ✴

✴हमर छत्तीसगढ़ के सिधवा मनखे ✴
हमर छत्तीसगढ़ के सीधवा मनखे, 
सबाे के मन ला भावत हे l
भाईचारा बनाए खातिर, 
 सबो संग मिलके खावत हे, 
हमर छत्तीसगढ़ के सिधवा मनखे 
सबो के मनल भावत हे ।
महानदी के पानी पिए, 
अपन कटोरा के भात खाए, 
अपन प्रदेश के पहचान खातीर।
 सब जगह मा पहचान जाए, 
 हमर भाई के मीठ  बोली।
 सबके मनल  भावत हे ।
हमर छत्तीसगढ़ के सिधवा - - - - - - - - 
 काम करथस मशीन बराबर, 
 पसीना के धार बहावत हे।
लइका सियान सबओ झन, 
बढ़ सीधवा तोला कहत हे ।
हमर छत्तीसगढ़ के - - - - - - - - - - - - 
रहीथस तैहर बेटा बरोबर, 
करथस सुंदर काम गा ।
  तोर करम मेहनत ला देख, 
होवत हे तोर नाम गा ।
जग मा तय बनाई दारे 
अपन सुंदर पहचान ग
हमर छत्तीसगढ़ के - - - - - - - - - लेखक -रवि दिवाकर

भ्रष्टाचार

                       भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार के मच्छर संगी ,
सबो के खून ल पियत हे,
धान के कटोरा ल बदरा कर , 
स्वतंत्र जियत हे।
देखव तुमन स्कल कालेज,
देखव ये संसार ल
 भारत के कोना-कोना म संगी ,
पंख लेहे पसार।
चारो कोति हाहाकार,
मचाए हावय रे ।
भ्रष्टाचार के मच्छर संगी,
चारो कोति उड़त हे।
गए रहे मैहा जिला ,
जाति ल बनवाए।
आनि-बानि पुछ के कहिस,
रूपया तैहा लाए,
होबे तैहा पिछड़ी जाति ,
पॉच के नोट दे- दे।
तैहा होवे आदिवासी,
दू के नोट रख दे।
ओकर बात ल सुनके,
मै हैरान होगे जी,
भ्रष्टाचार के मच्छर से ,
परिशान होगे न।
भ्रष्टाचार के मच्छर संगी,
चारो कोति उड़त हे।।
लेखक-रवि कुमार दिवाकर

करमईता बेटा

    🌻  करमईता बेटा🌻
सुन मोर करमईता बेटा,
करम ल तय हा सुधार।
तड़पत हे तोर मॉ-बाप रे ...........2
छोटे-छोटे ल बड़े कर दारेन,
पढ़ -लिख तय होगेे होगे सज्ञान।
कब आही मोर दुलवा तोला ज्ञान रे।
तड़पत हे तोर मॉ-बाप रे ...........2
सुन मोर करमईता बेटा..................
पापी पेट के खातिर बेटा,
मारे -मारे मै फिरत हौ।
अपन करेजा ल पथरा करके,
अंतस म मय जियत हौ।
मान ले तय मोर कहना रे,
अब जादा झन तड़पाना।
सुन मोर करमईता बेटा.................
दई-ददा ल घर ल निकाले,
जिते जियत माटी दे दारे।
अपन लहु ल पानी बनाके,
नस-नस म दारू भर दारे।
तोर करम ल देख के,
ऑुखी म आगे लहु रे।
सुन मोर करमईता बेटा................
घर -द्वार म तय आगी लगाए,
अपन ददा ल लाठी म मारे।
दई ल तय दई कस नई जाने,
अपन घर म नौकरानी बनाए।
सुनके रोए पारा-पडो़सी,
तोर करम ल न।
सुन मोर करमईता बेटा......

नशा

नशा
कुकरी के साग संगी, दारू के झोर रे।
तैहर पी-पी के संगी जिंदगी ल बोर रे।
नइ माने मोर बात संगी, करे मनमानी रे।
तड़प-तड़प के तय,बिताए जिंदगानी रे।
कुकरी के साग संगी...................................
लोग लईका भूख मरत हे,
घर अंधयारी हावय रे।
तन म एकठन ओनहा नइए,
होगे मै दुखयारी रे।
कुकरी के साग संगी...............................
कुकरी बोकरा दारू अउ,
जुवा म तय लुटाए रे।
दस काठा जमीन ल संगी,
पानी म बहाय रे।
कुकरी के साग संगी.....................
हीरा जैसे जिंदगी ल संगी,
कौड़ी तय बनाए रे ।
सिगरेट अउ बिड़ी पिके,
धुआ कस उड़ाए रे।
कुकरी के साग संगी..........
आही एक दिन यम राजा,
आत्मा ले जाही रे।
अभी ल बने हे संगी,
छोड़ मनमानी रे।
कुकरी के साग संगी...............
जग म तय बदनाम होगे,
नइए तोर पुछारी रे।
घर-द्वार ल छोड़ के संगी,
जाबो बनवारी रे।
कुकरी के साग संगी...............
लेखक-रवि कुमार दिवाकर

दारू

दारू
तोला का बतावा संगी रे ,
छोड़ दे दारू पिए ल ........2
कुकरी खाए ,बोकरा खाए,
पेट भर पिए दारू।
लइका मन के हक ल खाके ,
बनत हस मयारू।
तोला का बतावा..................
गली-गली म झुमत रहिथस,
जइसे मतवाल हाथी।
दाई-ददा तोला गाली देवय।
लाठी मारे साथी।
तोला का बतावा...........
घर पविर ल छोड़ के संगी ,
दारू ल मीत बनाए।
अपन आप ल धोखा देके,
काया म रोग फैलाए।
तोला का बतावा......................
घर म फूठी कौड़ी नइए
हडि़या सुना हावय
लईका मन भूख मरत हे,
हडि़या झॉकत जावय
तोला का बतावा.....................
लेखक-रवि कुमार दिवाकर

जावत हस घर छोड़ के

ravidiwakar01@gmail.com
🍇 घर छोड़ के🍇
जावत हस घर छोंड़ के संगी
आगी झन लगाना रे .............2
लात मारही महल वाला त
कहॉ के घर ल पाना रे ?
अपन घर म तय राजा रहे
पर के घर म माटी ग
घर म रहस शेर बरोबर
पर घर होगे चाटी ग
जावत हस घर छोंड़ के संगी..............
मखमल के कपड़ा ल बने,
तोर चिथरा-फटहा पेंट।
नईए बडि़या घर द्वार त,
अपन कुरिया तोर टेंट।
जावत हस घर छोंड़ के संगी..................
बनें रहय तोर बासी नून,
अपन शरीर के अपन खून।
झन छोड़ भाई घर -द्वार
यही म होही तोर बेड़ापार। 
जावत हस घर छोंड़ के संगी..............
तोर लगाए फुल-फुलवारी
तोरेच आही काम ग
कतको कमा ले पर के घर म
नई होवय तोर नाम ग
जावत हस घर छोंड़ के संगी
आगी झन लगाना रे .............2
लात मारही महल वाला त
कहॉ के घर ल पाना रे ?
लेखक-रवि दिवाकर