कुकरी के साग संगी, दारू के झोर रे।
तैहर पी-पी के संगी जिंदगी ल बोर रे।
नइ माने मोर बात संगी, करे मनमानी रे।
तड़प-तड़प के तय,बिताए जिंदगानी रे।
कुकरी के साग संगी...................................
लोग लईका भूख मरत हे,
घर अंधयारी हावय रे।
तन म एकठन ओनहा नइए,
होगे मै दुखयारी रे।
कुकरी के साग संगी...............................
कुकरी बोकरा दारू अउ,
जुवा म तय लुटाए रे।
दस काठा जमीन ल संगी,
पानी म बहाय रे।
कुकरी के साग संगी.....................
हीरा जैसे जिंदगी ल संगी,
कौड़ी तय बनाए रे ।
सिगरेट अउ बिड़ी पिके,
धुआ कस उड़ाए रे।
कुकरी के साग संगी..........
आही एक दिन यम राजा,
आत्मा ले जाही रे।
अभी ल बने हे संगी,
छोड़ मनमानी रे।
कुकरी के साग संगी...............
जग म तय बदनाम होगे,
नइए तोर पुछारी रे।
घर-द्वार ल छोड़ के संगी,
जाबो बनवारी रे।
कुकरी के साग संगी...............
लेखक-रवि कुमार दिवाकर